Friday, October 9, 2020

हाय री विडंबना !!!!

 हाय री विडंबना

नारी तेरी!!!!

चीर भी तेरा !

मौत भी तेरी !

दोषी भी तू ही कहलाएगी!!!

उन्नीसवीं हो या इक्कीसवीं सदी

तू ही कोसी जाएगी!!

पुरुषत्व के अहम को पोषने 

नोचते समुह में

एक शेरनी को,

जब तक धूल नहीं चटाएगी

चाहे सीता हो , द्रोपदी हो या 

हो निर्भया 

हर युग में तू ही

दुत्कारी जाएगी

तू ही कोसी जाएगी।


आखरी चंद  पक्तियां ( महिला नेत्रिओ )  के लिए

माना पार्टी का दबाव हैं,

सत्ता से प्रगाढ़ लगाव है

पर मत भूलो अपने अस्तित्व को

नारी के स्वरूप को

बेटी तुम भी हो किसी की

शायद तुम्हारी भी बेटी हो

बेटी शायद ना भी हो ,

मां से नज़रे कैसे मिलाओगी

जब एक बेटी के चरित्र पर 

लांछन लगाओगी ।

Wednesday, October 7, 2020

मौन क्यु है, प्रखर प्रवक्ता?

 मौन क्यु है, प्रखर प्रवक्ता

 एक बेटी के बलात्कार पर

 एक माॅ की चीत्कार पर

 शब्द नही या शर्म नही,

 समर्थक हैं अत्याचारी के

 मौन क्यों है प्रखर प्रवक्ता

 प्रशासन के अत्याचार पर,

 जाती के अहंकार पर 

 गलती इस मासूम की वो 

 उस भारत की बेटी थी, 

 जहां का मुखिया मौन है,

 बेटी से नाइंसाफी पर

 क्या ये गांधी का भारत है?

 या हिटलर की परछाईं है!!!

 एक बेटी के बलात्कार पर 

 जातिवाद भारी है!!

 मौन क्यू है , प्रखर प्रवक्ता

 गुप्त शव दाह पर

 आत्मा के भी बलात्कार पर

 नहीं सहेंगे अब ये चुप्पी

 नारी समता की बात है

 रावण भी जब बच ना पाया 

 तो किसी की क्या बिसात है

 तोड़ो चुप्पी वो दलित नहीं 

 इस भारत की बेटी है

 बेटी तो बेटी होती है 

 दलित या सवर्ण नहीं होती।

 मौन तोड़ो प्रखर प्रवक्ता

 जनता को इंतजार है।

Friday, September 18, 2020

जिंदगी की रफ़्तार Jindagi ki Raftar


आजकल माहौल में

      अजब नमी सी है

जिधर देखो उधर

      जिंदगी थमी सी है

इस उदासी को

      उखाड फेंकना है ,                             

जिंदगी को फिर से

      रफ़्तार देना है |

अतीत की उधेड़बुन

      से मुक्त होकर ,

वर्तमान को नया

      आकार  देना है|

चलो फिर उठ खड़े हो

भर ले आसमां

      को अपनी मुट्ठी में,

बचपन की शरारतों को

      फिर अंजाम देना है |

न गिरने का डर

न चोट लगने का भय

सपनो की फिर

      उड़ान भरना है |

भविष्य की चिंताओं से परे

वर्तमान को नया

      आकार देना है |

 जिंदगी को फिर से

       रफ़्तार देना हैं |

aajkal mahol m 

    ajab nami si h

jidhar dekho udhar

    jindagi thami si h

is udasi ko

     ukhad fekna h

 jindagi ko fir se

     raftar dena h

 atit ki udherbun 

    se mukt hokar 

vartman ko naya 

    aakar dena h

 chalo fir uth khade ho

 bhar le aasma ko

     apni muththi m 

bachpan ki shararato ko

     fir anjam dena h

 n girne ka dar 

na chot lagne ka bhay 

sapno ki fir 

    udan bharna h 

bhavishya ki

     chintao se pare 

vartman ko

     naya aakar dena h

 jindagi ko fir 

    se raftar dena h



Thursday, July 9, 2020

Kya yahi sushasan chaha tha.... क्या यही सुशासन चाहा था....

एक दिन, 
दो कुर्सियां
विचार कर रहीं थी | 
पुराना “ वफादार “ या  नया “ सरदार “
तकरार कर रही थी | 
“ निष्ठा “ और “ सौदेबाजी” में
होड़ लगी थी | 
राजतंत्र की हालत देख 
लोकतंत्र की रूह कंपी थी
“ कुलपति “ को “ कुलपिता “ का 
संदेशा आया था
निष्ठा ने सौदेबाजी के समक्ष
शीश झुकाया था | 
यह देख उसका भी 
मन झुंझलाया था | 
कुर्सी बेचारी क्या करती ,
उसकी भी मजबूरी थी !!
बेमन ही सही
उसने दी मंजूरी थी !!!
चंद रुपयों की खातिर 
जनादेश को ठुकराया था  !!!!
क्या यहीं सुशासन  ...........
भारतवर्ष ने चाहा था ....................

Sunday, June 28, 2020

Chalo Ak Bar Fir…… चलो एक बार फिर…….

 बरसात की इस  सुहानी शाम में,
 चलो एक बार फिर 
	पुराने सफर पर चलते हैं |
 चलो एक बार फिर 
	“शुरू” से शुरू करते हैं||
 जहाँ न थी ,भविष्य की चिंता 
 न अतीत की झुंझलाहट 
 था तो बस, प्रेम प्रेम और बस प्रेम 
 चलो एक बार फिर 
	वर्तमान को जी लेते हैं |
 चलो एक बार फिर 
	“शुरू” से शुरू करते हैं|| 
 जहाँ न थी,  कमाने की चिंता
 न गंवाने की परवाह 
 था तो बस एक दूसरे का साथ,
 चलो एक बार फिर 
	मैं और तुम को हम कर लेते हैं| 
 चलो एक बार फिर
 	“शुरू” से शुरू करते हैं||
 वो बरसात जिसमें भीगकर
 हम हो गए थे, सदा के लिये एक 
 चलो एक बार फिर 
	उन लम्हों को जी लेते हैं| 
 चलो एक बार फिर 
	“शुरू” से शुरू करते हैं||

 Barsat ki is suhani sham mein,
 Chalo ak bar fir
	Purane safar par chalet hein.
 Chalo ak bar fir
	“Shuru” se shuru karte hein.
 Jaha n thi, bhavishya ki chinta
 N atit ki jhunjhlahat
 Tha to bas, prem, prem aur bas prem
 Chalo ak bar fir
	Vartman ko ji lete hein.
 Chalo, ak bar fir
	“Shuru” se shuru karte hein.
 Jaha n thi kamane ki chinta
 N gawane ki parwah
 Tha to bas ak dusare ka sath,
 Chalo ak bar fir
	“ mein” aur  “tum” ko “hum” kar lete hein.
 Chalo ak bar fir
	“Shuru” se shuru karte hein.
 Vo Barsat jisme bhigkar,
 Hum ho gaye the, 
 sada ke liye ak
 Chalo ak bar fir
	Un lamho ko ji lete hein. 
 Chalo ak bar Chalo ak bar fir
	“Shuru” se shuru karte hein.

Thursday, June 25, 2020

किस नाम से पुकारू

कोरोना किस नाम से  पुकारू तुम्हें .......
निर्दयी , निष्ठुर , पापी , अधर्मी 
या कुदरत  का न्याय |

पैसा कमाने की अंधी दौड़ में , 
परिवार को भूलने वाले को 
विवश कर दिया तुमने 
परिवार के साथ रहने को तो ,
मगर अर्थी से छिन लिया,
अपनों के कंधे का हक़ |

परिवार का महत्व तो, तुमने समझाया,
लेकिन मृत्युशय्या पर लेटे इंसान को, 
अपनों का मुख भी न दिखाया |

कोरोना कितने निष्ठुर हो तुम, 
नहीं निष्ठुर नहीं, 
मैं तो तुम्हें आततायी कहूँगी ।

संतान कि एक झलक को तरसते माता–पिता,
पती या पत्नि के सहारे को आकुल,
माता के स्नेह के लिये व्याकुल,
शिशुओ को भी ना बख्शा तुमने!

एक माँ का रुदन,
बच्चे का क्रन्दन,
एक पिता की वेदना
मृत्युशय्या पर लेटे इंसान
की अपनों को तरसती आँखे 
जरा भी विचलित न कर पाई तुम्हें !

तुम सचमुच बहुत निर्दयी हों, 
नहीं निर्दयी नहीं,
मैं तो तुम्हें संवेदनाहीन कहूँगी |



KIS NAAM SE PUKARU
corona, kis naam se pukaru tumhe
Nirdayee, Nishthoor,Papi,Adharmi
ya Kudarat ka nyaya.

paise kamane ki andhi daud me
pariwar ko bhulne wale ko,
vivash kar diya tumne, 
pariwar ke sath rahne ko to,
magar arthi se chhin liya
apno ke kandhe ka haq.

Corona kitne nishthoor ho tum,
nahi Nishthoor nahi, 
mein to tumhe, Atatayee kahungi.

santaan ki ea jhalak ko, taraste mata-pita,
pati ya patni ke, sahare ko aakul
mata ke sneh, ke liye vyakul
shishuo ko bhi na bhakhsha tumne.
ek maa ka rudan,
ek bachche ka krundan,
ek pita ki vedana,
mrityushayya par lete insan
ki apno ko tarasti aankhe
jara bhi vichalit na kar pai tumhe!

Tum sachmuch bahut nirdayee ho , 
nahi Nirdayee nahi, 
mein to tumhe samvedanaheen kahungi

Wednesday, June 24, 2020

चार - चार पंक्तियाँ

ये महामारी, हमेशा गरीबो पर ही क्यों भारी होती हैं, 
क्या प्रकृति के न्याय मैं भी,पैसो की शुमारी होती हैं |
गर ऐसा हैं तो, फिर क्यों कहते हैं की
पैसो की तो सिर्फ, इस दुनिया में खुमारी होती हैं ||

Ye mahamari, hamesha garibo par hi kyo bhari hoti hein,
kya prakriti ke nyay mein bhi paiso ki shumari hoti hein.
gar esa hein to, fir kyo kahte hein ki 
paiso ki to sirf, is duniya  mein khumari hoti hein


दान तो, बहुतो की झोली से निकला हैं,
मगर क्या,जरुरतमंदों की ड्योढ़ी तक पहुँचा  हैं |
गर पहुँचा हैं,तो किस गृह के हैं वो लोग, 
जिनके घरों से,भूखों का जनाज़ा निकला हैं ||

dan to, bahuto ki jholi se nikla hein,
magar kya, jaruratmando ki dyodi taq pahucha hein,
gar pahucha hein, to kon hein vo log,
jinke gharo se, bhukho ka janaja nikla hein.