कोरोना किस नाम से पुकारू तुम्हें .......
निर्दयी , निष्ठुर , पापी , अधर्मी
या कुदरत का न्याय |
पैसा कमाने की अंधी दौड़ में ,
परिवार को भूलने वाले को
विवश कर दिया तुमने
परिवार के साथ रहने को तो ,
मगर अर्थी से छिन लिया,
अपनों के कंधे का हक़ |
परिवार का महत्व तो, तुमने समझाया,
लेकिन मृत्युशय्या पर लेटे इंसान को,
अपनों का मुख भी न दिखाया |
कोरोना कितने निष्ठुर हो तुम,
नहीं निष्ठुर नहीं,
मैं तो तुम्हें आततायी कहूँगी ।
संतान कि एक झलक को तरसते माता–पिता,
पती या पत्नि के सहारे को आकुल,
माता के स्नेह के लिये व्याकुल,
शिशुओ को भी ना बख्शा तुमने!
एक माँ का रुदन,
बच्चे का क्रन्दन,
एक पिता की वेदना
मृत्युशय्या पर लेटे इंसान
की अपनों को तरसती आँखे
जरा भी विचलित न कर पाई तुम्हें !
तुम सचमुच बहुत निर्दयी हों,
नहीं निर्दयी नहीं,
मैं तो तुम्हें संवेदनाहीन कहूँगी |
KIS NAAM SE PUKARU
corona, kis naam se pukaru tumhe
Nirdayee, Nishthoor,Papi,Adharmi
ya Kudarat ka nyaya.
paise kamane ki andhi daud me
pariwar ko bhulne wale ko,
vivash kar diya tumne,
pariwar ke sath rahne ko to,
magar arthi se chhin liya
apno ke kandhe ka haq.
Corona kitne nishthoor ho tum,
nahi Nishthoor nahi,
mein to tumhe, Atatayee kahungi.
santaan ki ea jhalak ko, taraste mata-pita,
pati ya patni ke, sahare ko aakul
mata ke sneh, ke liye vyakul
shishuo ko bhi na bhakhsha tumne.
ek maa ka rudan,
ek bachche ka krundan,
ek pita ki vedana,
mrityushayya par lete insan
ki apno ko tarasti aankhe
jara bhi vichalit na kar pai tumhe!
Tum sachmuch bahut nirdayee ho ,
nahi Nirdayee nahi,
mein to tumhe samvedanaheen kahungi